जेल में बंद कैदियों के परीक्षा देने, स्वरोजगार करने और अलग-अलग तरह के काम करने की खबरें आपने सुनी होंगी. लेकिन गाज़ियाबाद के डासना कारागार से जो तस्वीर आई है, वह थोड़ी अलग है. डासना जेल इन दिनों चर्चा में इसलिए आई है, क्योंकि यहां 11 वर्षों तक सजा काटने वाले एक कैदी ने एक किताब लिखी है. जेल में सजा काटने वाले शकील अमीरुद्दीन ने यह किताब लिखी है, जिसका शीर्षक है ‘गुले मुकद्दस’. 11 साल पहले शकील को जब सजा हुई, उस समय वे अनपढ़ थे. लिखना-पढ़ना बिल्कुल नहीं आता था. लेकिन यहीं क, ख, ग… सीखकर शकील ने आज की तारीख में एक किताब लिख डाली है.
IGNOU से की अपनी पढ़ाई पूरी
जेल अधीक्षक अलोक सिंह ने बताया कि कारागार में शकील नाम का बंदा था, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानता था. मगर जेल में रहते हुए उसने पढ़ाई-लिखाई में रुचि दिखाई. जेल प्रशासन ने मदद की, तो शकील पढ़ना-लिखना सीख गया. उसने IGNOU से अपनी पढ़ाई पूरी की. शेर और शायरी में भी शकील का काफी इंट्रेस्ट था. जब भी कोई कार्यक्रम जेल में होता था तब हमेशा इस बंदी की कविताओं पर तालियों की गड़गड़ाहट देखने को मिलती थी. आज ये बंदी आजाद है और ई-रिक्शा चलाकर परिवार का गुजर-बसर कर रहा है. उन्होंने बताया कि जेल में विभिन्न तरह के बंदियों के कौशल विकास के लिए इंडिया विजन फाउंडेशन के जारी कार्य किए जाते हैं.
जेल में आया तब मेरी मोहब्बत मुझसे छूट गई
शकील ने बताया कि उनकी किताब गुले मुकद्दस मोहब्बत पर आधारित है. इसे लिखने में उन्हें 7 वर्षों का समय लग गया. यह किताब उनकी सच्ची मोहब्बत की दास्तां है. शकील बताते हैं कि मोहब्बत इंसान से हो या फिर पेड़-पौधे से या फिर अपने काम से. खेतों में काम करने के दौरान ही एक लड़की से उन्हें इश्क हुआ था. हालांकि दोनों का प्यार परवान नहीं चढ़ सका. शकील को जेल की सजा हो गई. वह बताते हैं कि जब जेल में आया था, तब मेरी मोहब्बत बाहर छूट गई. उनकी याद में बहुत रोया. तीन साल तक आंसू रुके ही नहीं. अब भी उनके लिए मोहब्बत है, लेकिन वह अब शादीशुदा है. शकील की भी शादी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि यह किताब अपनी पूर्व प्रेमिका को भेंट करेंगे. किताब की कीमत 200 रुपए है.