उत्तर प्रदेश में पुलिस व्यवस्था को अधिक प्रभावी, मानवीय और पेशेवर बनाने के लिए एक नई सोच के साथ काम हो रहा है। इसी दिशा में डीजीपी राजीव कृष्ण ने सुल्तानपुर, वाराणसी और अमेठी के पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों का दौरा कर रहे सिपाही रंगरूटों की ट्रेनिंग का गहराई से मूल्यांकन किया। इस निरीक्षण का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि प्रशिक्षण सिर्फ थ्योरी तक सीमित न रह जाए, बल्कि समाज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक और व्यवहार-केंद्रित प्रशिक्षण भी दिया जाए। डीजीपी ने साफ शब्दों में कहा कि पुलिस बल अब केवल अनुशासन और शक्ति का प्रतीक न रहकर, जनसेवा में संवेदनशील नेतृत्व भी प्रस्तुत करे।
पाठ्यक्रम में बदलाव के संकेत
राजीव कृष्ण ने अधिकारियों को सुझाव दिया कि वे प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की नए सिरे से समीक्षा करें और अपने अनुभवों के आधार पर प्रासंगिक विषय-वस्तु तैयार करें। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी खुद कक्षाएं लेकर प्रशिक्षुओं को मार्गदर्शन दें और उदाहरण प्रस्तुत करें।
बेहतर प्रशिक्षकों की कक्षाओं को रिकॉर्ड कर अन्य ट्रेनिंग संस्थानों में भेजने की बात भी सामने आई, ताकि पूरे प्रदेश में एक समान उच्च गुणवत्ता वाली ट्रेनिंग दी जा सके। इससे पुलिस व्यवस्था में व्यावसायिकता और दक्षता का स्तर एकरूप हो सकेगा।
सिपाही से समाज सेवक तक का सफर
डीजीपी ने भरोसा जताया कि आज जो सिपाही प्रशिक्षण केंद्रों में सीख रहे हैं, वे कल थानों में जाकर समाज में सकारात्मक बदलाव के वाहक बनेंगे। उनका मानना है कि अच्छी ट्रेनिंग से न केवल पुलिसकर्मियों की कार्यशैली में सुधार आता है, बल्कि जनता का भरोसा भी और मजबूत होता है।
अंत में उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि पुलिसकर्मियों को केवल कानून का रखवाला नहीं, बल्कि संवेदनशील और सक्षम जनसेवक के रूप में तैयार किया जाए। अधिकारियों से उन्होंने अपील की कि वे इस प्रक्रिया में पूरे समर्पण के साथ भाग लें और युवा सिपाहियों को अपने अनुभवों से सशक्त बनाएं।