लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान हो चुका है. 543 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान होगा. मतदान की शुरुआत 19 अप्रैल से होगी और नतीजे 4 जून को आएंगे. वहीँ 26 अप्रैल को दूसरा फेस, 7 मई को तीसरा फेस, 13 मई को चौथा फेस, 20 मई को पांचवा फेस, 25 मई को छठां फेस और अंतिम 1 जून को सातवां फेस होगा तो वहीँ 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे और इसे के साथ देश भर में आदर्श आचार संहिता लागु हो गयी है।
क्या होती है आदर्श आचार संहिता
चुनाव आयोग ने देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कुछ नियम बनाए हैं। आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं। लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों के लिए जरूरी होता है। इलेक्शन कमीशन भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन संसद और राज्य विधान मंडलों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन के लिए अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल (दलों) और चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों से इसका पालन सुनिश्चित करता है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के प्रयोजनार्थ अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो। आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं। आचार संहिता सभी राजनीतिक दलों की सहमति से लागू एक सिस्टम है।
आचार संहिता कब तक रहती है प्रभावी?
चुनाव आयोग जब चुनाव की तारीखों की घोषणा करता है। उसी के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है। इस बार आचार संहिता कल यानी (16 मार्च, 2024) से लागू हो जाएगी। क्योंकि चुनाव आयोग शनिवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा। आचार संहिता निर्वाचन प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है। या दूसरे शब्दों में कहें तो आचार संहिता चुनावी परिणाम आने तक लागू रहती है। चुनाव प्रक्रिया पूरी होते ही आचार संहिता समाप्त हो जाती है।
आम आदमी पर भी लागू
कोई आम आदमी भी इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भी आचार संहिता के तहत कार्रवाई की जाएगी। इसका मतलब यह है कि यदि आप अपने किसी नेता के प्रचार में लगे हैं, तब भी आपको इन नियमों को लेकर जागरूक रहना होगा। कोई राजनेता आपको इन नियमों के इतर काम करने के लिए कहता है तो आप उसे आचार संहिता के बारे में बताकर ऐसा करने से मना कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा करते पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई होती है। उल्लंघन करने पर आपको हिरासत में भी लिया जा सकता है।
सरकार नहीं कर सकती ट्रांसफर-पोस्टिंग
आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी की ट्रांसफर-पोस्टिंग सरकार नहीं कर सकती है। ट्रांसफर कराना बहुत जरूरी हो गया हो, तब भी सरकार बिना चुनाव आयोग की सहमति के ये निर्णय नहीं ले सकती है। इस दौरान राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त जरूरत के हिसाब से अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकते हैं। पार्टी की जुलूस या रैली निकालने के लिए प्रत्याशी को चुनाव आयोआचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होता है?ग से परमिशन लेनी होती है। इसकी जानकारी प्रत्याशी को पास के थाने में भी देनी होती है। जनसभा और स्थान की जानकारी पुलिस अधिकारियों की देनी होती है।
आचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होता है?
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई नियम भी लागू हो जाते हैं। इन नियमों का उल्लंघन कोई भी राजनेता या राजनीतिक दल नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के दौरान अपराध, कदाचार और भ्रष्ट आचरण, रिश्वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करने जैसी गतिविधियों को रोका जा सके। इनके उल्लंघन के मामले में उचित कार्रवाई की जाती है।अगर कोई शख्स या राजनीतिक दल नियमों का पालन नहीं करता है तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ एक्शन ले सकता है। प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोका भी जा सकता है। साथ ही उसके खिलाफ FIR दर्ज भी की जा सकती है। दोष सिद्ध होने पर प्रत्याशी को सलाखों के पीछे भी जाना पड़ सकता है। इलेक्शन कमीशन आचार संहिता लागू होने से पहले भी कार्रवाई कर सकता है। साल 2010 में चुनाव आयोग के सामने यह शिकायत आई थी कि बसपा ने सरकारी पैसे से अपने चुनाव चिह्न ‘हाथी’ की प्रतिमाएं बनवाकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है। चुनाव आयोग ने इस शिकायत पर कहा कि आचार संहिता की समय-सीमा से बाहर किसी भी राजनीतिक दल की ओर से सरकारी शक्ति और तंत्र के कथित दुरुपयोग पर एक्शन नहीं ले सकते हैं।आयोग के इस रुख को दिल्ली हाई कोर्ट में कॉमन कॉज बनाम बसपा के रूप में चुनौती दी गई। इस केस जुड़े नियमों को जांच करने के बाद हाई कोर्ट फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग बसपा के चुनाव चिह्न को अमान्य घोषित कर सकता है।
चुनावी खर्च में क्या होता है शामिल
चुनावी खर्च में वो राशि शामिल है, जो एक उम्मीदवार चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च करता है। इसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है। जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किए गए सभी व्यय का अलग और सही खाता रखना होता है। चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों में उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है। यदि प्रत्याशियों ने गलत विवरण प्रस्तुत किया तो अधिनियम की धारा 10 के तहत चुनाव आयोग उसे तीन साल के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है।
आचार संहिता की शुरुआत कब हुई
आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव में हुई थी, जिसमें बताया गया कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं। चुनाव आयोग ने 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इसके बारे में सभी राजनीतिक दलों को अवगत कराया था। 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से आचार संहिता की व्यवस्था लागू हुई। तब से अब तक नियमित इसका पालन हो रहा है। हालांकि समय-समय पर इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव होता रहा है।
इन कार्यों पर नहीं रहती पाबंदी
आचार संहिता लगने से पहले जिस सरकारी योजना पर काम शुरू हो गया है। वो आचार संहिता लागू होने के बावजूद जारी रहती है। जिन योजनाओं में आचार संहिता लागू होने से पहले किसे लाभ मिलेगा, इसकी पहचान हो गई हो, वो योजनाएं चालू रहेंगी। वहीं पहले से चल रही मनरेगा जैसी योजनाएं जारी रहती हैं। जिन नई योजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है और उसके लिए राशि भी स्वीकृत हो चुकी हो तो वो चलती रहेंगी। साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस, जाति-निवास प्रमाण पत्र, जमीन की रजिस्ट्री जैसे काम आचार संहित के दौरान भी जारी रहते हैं।
आचार संहिता के दौरान किन कार्यों पर होती है पाबंदी
- चुनावी बेला में आचार संहिता के तहत जानकारी दी जाती है कि राजनीतिक पार्टियां और प्रत्याशी क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते हैं। यह ऐसे कार्य होते हैं जो चुनाव को डायरेक्ट या फिर इनडायरेक्ट रूप से चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं।
- आचार संहिता लागू होने पर सरकार नई योजना और नई घोषणाएं नहीं कर सकती।
- चुनाव प्रचार के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और सरकारी गाड़ी, बंगला, हवाई जहाज का उपयोग वर्जित होता है।
- राजनीतिक दलों को रैली, जुलूस या फिर मीटिंग के लिए परमिशन लेनी होती है।
- धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाता है।
- मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत नहीं दी जा सकती है।
- आचार संहिता लागू होते ही दीवारों पर लिखे गए सभी तरह के पार्टी संबंधी नारे व प्रचार सामग्री हटा दी जाती है।
- मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवा सकते हैं।
- मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित नहीं की जा सकती है।
- चुनाव कार्यों से जुड़े किसी भी अधिकारी को किसी भी नेता या मंत्री से उसकी निजी यात्रा या आवास में मिलने की मनाही होती है।
- आदर्श आचार संहिता लगने के बाद पेंशन फॉर्म जमा नहीं हो सकते और नए राशन कार्ड भी नहीं बनाए जा सकते।
- विधायक, सांसद या विधान परिषद के सदस्य लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से नई राशि जारी नहीं कर सकते हैं।
- सरकारी खर्चे पर किसी नेता के आवास पर इफ्तार पार्टी या अन्य पार्टियों का आयोजन नहीं कराया जा सकता है।
- कोई भी नया सरकारी काम शुरू नहीं होगा और न ही किसी नए काम के लिए टेंडर जारी होंगे।
- आदर्श आचार संहिता लगने के बाद बड़ी बिल्डिंगों को क्लियरेंस नहीं दी जाती है।
- मतदान के दिन मतदान केंद्र से सौ मीटर के दायरे में चुनाव प्रचार पर रोक और मतदान से एक दिन पहले किसी भी बैठक पर रोक लग जाती है।
- हथियार रखने के लिए नया आर्म्स लाइसेंस नहीं बनेगा। बीपीएल के पीले कार्ड नहीं बनाए जाएंगे।