उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और रिटायर IPS अफसर सुलखान सिंह ने बुंदेलखंड लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर अपनी राजनीतिक पारी का ऐलान कर दिया है। इसके बाद सत्ता और अफसरशाही के गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि जमीन पर उनका यह ऐलान राजनैतिक सफलता के किस मुकाम तक पहुंचेगा। दरअसल, यूपी में अभी तक अफसरशाही के राजनैतिक राह पकड़ने के मामलों में सफलता-असफलता के परिणाम मिले-जुले ही सामने आए हैं। जिन अफसरों ने खुद का दल बनाकर या छोटे-मोटे दलों के सहारे राजनीति को चमकाने की कोशिश की, उनमें से ज्यादातर नाकाम ही रहे। जिन्होंने बड़े दलों की बांह थामी वे राजनीति में अपनी पहचान बनाने में कामयाब साबित हुए।
अमिताभ ठाकुर
1992 बैच के IPS रहे अमिताभ ठाकुर को योगी सरकार 2.0 में सेवा से जबरन रिटायर कर दिया गया था। पहले चर्चा रही कि वह आम आदमी पार्टी जॉइन करेंगे, लेकिन उन्होंने चर्चाओं से इतर आजाद अधिकार सेना का गठन किया। ठाकुर की पार्टी अभी गैरपंजीकृत की श्रेणी में है, लेकिन लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने की तैयारी है भले उम्मीदवार निर्दलीय के रूप में उतरे। पार्टी का दावा है कि करीब 10 हजार सदस्य बन चुके हैं।
विजय शंकर पांडेय
यूपी में भ्रष्टतम IAS अफसरों की सूची जारी कर देशभर में चर्चा में आए पूर्व IAS विजय शंकर पांडेय की राजनैतिक पारी भी सफल नहीं रही। 2019 में उन्होंने फैजाबाद (अब अयोध्या) में लोक गठबंधन पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें मात्र 2,056 वोट ही मिले।
बाबा हरदेव सिंह
कभी बुलडोजर बाबा के नाम से पूरे प्रदेश में पहचाने जाने वाले PCS अफसर रहे बाबा हरदेव सिंह ने भी रिटायरमेंट के बाद राजनीतिक अखाड़े में ताल ठोंकी। पहले वह राष्ट्रीय लोक दल से जुड़े और उसके प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। प्रदेश अध्यक्ष रहते उन्होंने आगरा की एत्मादपुर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा।
शैलेंद्र सिंह
माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ कार्रवाई के बाद पड़े राजनैतिक और विभागीय दबाव के विरोध में साल 2002 में नौकरी से इस्तीफा देने वाले PPS अफसर शैलेंद्र सिंह ने भी राजनीति में हाथ आजमाए। वाराणसी लोकसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा। वह कांग्रेस से जुड़े और पार्टी के टिकट पर 2009 में चंदौली और 2012 में सैय्यदराजा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। बाद में वह बीजेपी से जुड़ गए।
चंद्रपाल
IAS अफसर चंद्र पाल ने रिटायरमेंट के बाद आगरा से चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं मिली। बाद में उन्होंने आदर्श समाज पार्टी बनाई और 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा।
एसआर दारापुरी की जमानत जब्त
पूर्व IPS एसआर दारापुरी रिटायरमेंट के बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में शाहाबाद सीट से रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से लड़े, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई।
राजनीति छोड़कर फिर नौकरी में आए
पूर्व IPS दावा शेरपा 2008 में इस्तीफा देकर राजनीति में उतर गए। चार साल तक न उनका इस्तीफा मंजूर हुआ न नौकरी जॉइन की। राजनैतिक पारी में असफल होने के बाद 2012 में वह नौकरी में लौट आए। कई साल तक उनका प्रमोशन लटका रहा। बाद में वह एडीजी के पद से रिटायर हुए। अफसरों के अलावा पूर्व न्यायाधीश चंद्रभूषण पांडेय ने भी राजनीतिक दल बनाया था, जिसका नाम नैतिक पार्टी रखा गया। इसे अब तक चुनावी सफलता नहीं मिल पाई है।
बड़े दलों के साथ गए और बन गए नेता
जिन अफसरों ने बड़े दलों का हाथ थामा उनके राजनीतिक करियर को चार चांद लग गए। इसमें सबसे पहला नाम पीएल पुनिया का है। कभी बीएसपी सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबी IAS अफसरों में गिने जाने वाले पीएल पुनिया ने रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस का हाथ थामा। वह कांग्रेस से सांसद बने और कई अहम जिम्मेदारियां संभाली। मायावती के एक और करीबी अफसर माने जाने वाले पूर्व IPS बृजलाल ने रिटायरमेंट के बाद बीजेपी का हाथ थामा। वह वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं। IPS की सेवा से बीच में ही VRS लेने वाले असीम अरुण योगी सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। 2022 के विस चुनाव से पहले ED से इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन करने वाले राजेश्वर सिंह विधायक हैं। रिटायरमेंट के बाद बीजेपी जॉइन करने वाले और पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी अफसरों में गिने जाने वाले एके शर्मा यूपी में कैबिनेट मंत्री हैं।