यूपी में जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह को 7 साल की सजा हुई है। जौनपुर की MP/MLA कोर्ट ने बुधवार को नमामि गंगे योजना के प्रोजेक्ट मैनेजर के किडनैपिंग केस में सजा सुनाई। कोर्ट ने 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। ऐसे में वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। कोर्ट रूम से बाहर निकले धनंजय ने कहा-फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाऊंगा। उन्होंने कहा- चुनाव जरूर लड़ा जाएगा, यह मुझे चुनाव से रोकने की साजिश है। पुलिस धनंजय को जिला जेल लेकर पहुंची है। मंगलवार को सुनवाई के बाद कोर्ट ने धनंजय को दोषी करार दिया था। मामले में संतोष विक्रम को भी 7 साल की सजा हुई है।
अपहरण किया और धनंजय के आवास पर ले गए
मुजफ्फरनगर निवासी नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल ने 10 मई, 2020 को लाइन बाजार थाने में अपहरण, रंगदारी और अन्य धाराओं में धनंजय सिंह और उनके साथी संतोष विक्रम पर FIR दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने कहा था कि संतोष विक्रम ने दो साथियों के साथ मेरा अपहरण किया और धनंजय के आवास पर ले गए। यहां धनंजय सिंह पिस्टल लेकर आए और गन पॉइंट पर गालियां दीं। मुझसे सड़क में कम गुणवत्ता वाली सामग्री लगाने के लिए कहा। मगर मैंने इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने रंगदारी मांगी। इसके साथ ही मुझे डराया-धमकाया। FIR दर्ज होने के कुछ घंटे बाद ही पुलिस ने धनंजय समेत दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था। अगले दिन उन्हें कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजा था। मामले में नया मोड़ तब आया था, जब धनंजय सिंह और उनके सहयोगी पर केस दर्ज कराने वाला मैनेजर कोर्ट में शपथ पत्र देकर आरोपों से मुकर गया। उसने कहा था कि केस दर्ज कराते समय वह तनाव में था। इस मामले में धनंजय सिंह 109 दिन जेल में रहे थे। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत ली थी।
40 से अधिक केस दर्ज
धनंजय सिंह पर जौनपुर, लखनऊ और दिल्ली सहित अन्य जगह 40 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनमें सबसे ज्यादा 19 मुकदमे लखनऊ के विभिन्न थानों में हैं। धनंजय 50 हजार के इनामी भी रह चुका है। धनंजय सिंह ने 2002 में पहली बार रारी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2007 में JDU के टिकट पर चुनाव जीते। 2008 में धनंजय JDU छोड़कर बसपा में चले गए। 2009 लोकसभा चुनाव में बसपा के धनंजय ने बाहुबल से पहली बार जौनपुर में जीत दर्ज की। इससे पहले यहां सपा, भाजपा और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। धनंजय सिंह ने सपा के कद्दावर नेता पारस नाथ यादव को करीब 80 हजार वोट से हराया था। इस चुनाव में धनंजय सिंह को 3लाख 2 हजार 618 वोट मिले। हालांकि 2011 में मायावती ने धनंजय को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर बसपा से बाहर कर दिया था। इसके बाद से धनंजय सिंह राजनीति रूप से कमजोर होते गए। 2012 में उनकी पूर्व पत्नी डॉ जागृति सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ीं लेकिन हार गईं।
2014 में मिले 64 हजार वोट
2014 के लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार दावेदारी पेश की। उन्हें करीब 64 हजार वोट ही मिले। बीजेपी के उम्मीदवार ने 3 लाख 67 हजार 149 वोटों के साथ जीत दर्ज की। 2014 और 2017 के विधानसभा चुनाव में धनंजय चुनावी मैदान में उतरे लेकिन जीत नहीं सके। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में भी धनंजय सिंह के साथ यही हुआ।
पुलिस रिकॉर्ड में मारे गए धनंजय
17 अक्टूबर 1998, पुलिस को किसी ने सूचना दी कि आज भदोही-मिर्जापुर रोड के एक पेट्रोल पंप पर लूट होने वाली है। पुलिस सक्रिय हो गई। असलहा लेकर मोर्चा संभाल लिया। चार लोगों का एनकाउंटर कर दिया। कहा- धनंजय सिंह को मार गिराया। इस तरह पुलिस रिकॉर्ड में धनंजय मर चुके थे, लेकिन चार महीने बाद ही फरवरी 1999 में धनंजय सिंह सामने आए और पुलिस के सच को झूठ साबित कर दिया।
2002 में राजनीति में आ गए धनंजय
2002 में रारी विधानसभा (अब मल्हनी) से धनंजय निर्दलीय विधायक बन गए। यहां से वह रॉबिनहुड की भूमिका में आ गए। 2007 के चुनाव में धनंजय सिंह निषाद पार्टी के टिकट से चुनाव लड़े और जीत गए। 2008 में पार्टी छोड़कर बसपा में चले गए। मायावती ने भरोसा जताया और 2009 में जौनपुर से लोकसभा प्रत्याशी बना दिया। यहां भी वह जीत गए। यही जीत अब तक की आखिरी जीत साबित हुई। 2011 में मायावती ने पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में शामिल होने के कारण बर्खास्त कर दिया।
15 साल की उम्र में पहली हत्या का आरोप
16 जुलाई, 1975 को धनंजय सिंह कोलकाता में पैदा हुए। जन्म के कुछ साल बाद पूरा परिवार जौनपुर आ गया। 1990 में 10वीं में थे। महर्षि विद्या मंदिर के शिक्षक गोविंद उनियाल की हत्या हो गई। नाम आया धनंजय सिंह का। 12वीं में पहुंचे। एक और युवक की हत्या हो गई। फिर से नाम आया धनंजय का। पुलिस ने पकड़ लिया। धनंजय को तीन परीक्षाएं पुलिस हिरासत में देनी पड़ीं।
यूनिवर्सिटी आए तो कर दिया ठाकुरवाद स्थापित
धनंजय सिंह आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंच गए। पहले दोस्त बने अभय सिंह। यहां पढ़ाई के साथ राजनीति शुरू हो गई। धनंजय, अभय, बबलू सिंह और दयाशंकर सिंह में कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन जाति के नाम पर सभी एकजुट हो गए। यूनिवर्सिटी में वर्चस्व बढ़ा तो ठेकों में दखल शुरू हो गया। हबीबुल्ला हॉस्टल इनकी दबंगई से चर्चा में आ गया। किसी को चाकू मारा गया हो, किडनैप किया गया हो या फिर कहीं गोली चली हो। इसी हॉस्टल का नाम आता और खोज होती धनंजय सिंह की। इस गुट का रेलवे के ठेकों में दखल बढ़ा। ये ठेके लेते नहीं थे, बल्कि बोली मैनेज करवाते थे। जिसे मिल जाती उससे गुंडा टैक्स वसूलते थे। इसे शॉर्ट फॉर्म में जीटी बोलते थे।
यूनिवर्सिटी से निकले तो 12 मुकदमे हो गए
साल 1997, लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर गोपाल शरण श्रीवास्तव अपनी मारुति 800 कार से ऑफिस जा रहे थे। बाइक से आए दो बदमाशों ने ओवरटेक किया और सामने से आकर गोली मार दी। गाड़ी सड़क किनारे बाउंड्री से टकराई। लोग जब तक पहुंचते गोपाल की मौत हो चुकी थी। इन दो बदमाशों में धनंजय नहीं थे, लेकिन साजिश रचने का आरोप इन्हीं पर लगा। घटना के बाद धनंजय फरार हो गए। पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया। अब तक कुल 12 मुकदमे धनंजय पर हो चुके थे।