Banda Jail की हथकड़ी और सलाखों में ऐसा क्या है की बड़े से बड़े माफिया भी वहां जाने से हैं घबराते

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यूपी के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उत्तर प्रदेश की बांदा जेल सुर्खियों में है. 1860 ईस्वी में बनी इस जेल में पिछले 3 साल से मुख्तार कैद था. मुख्तार को जेल के बैरक नंबर 15 में रखा गया था. साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने जब मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ जेल से उत्तर प्रदेश ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, तब यूपी सरकार ने उसे बांदा जिला कारागार में शिफ्ट करने का निर्णय लिया था. उस वक्त सरकार का कहना था कि बांदा जेल की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है और वहां मुख्तार जैसे बड़े अपराधियों को रखने में कोई परेशानी नहीं होगी. बांदा जेल मुख्तार से पहले भी कई बड़े माफियाओं का ठिकाना रह चुका है. पिछले 20 सालों में बांदा जेल जिन माफियाओं का ठिकाना रहा है, उनमें रघुराज प्रताप सिंह, परमेश्वर द्विवेदी, अनिल दुजाना और सुंदर भाटी के नाम प्रमुख हैं.

बांदा जेल की पूरी कहानी

बांदा उत्तर प्रदेश स्थित बुंदेलखंड जोन का एक जिला है. ब्रिटिश आधिपत्य के समय ही यहां एक जेल का निर्माण किया गया था. यूपी सरकार के मुताबिक यह जेल 1860 में बनकर तैयार हुई थी. इस जेल में 567 कैदियों के रहने की व्यवस्था है. यूपी जेल विभाग के मुताबिक बांदा जेल प्रयागराज मंडल के अधीन है. जेल में पुरुष कैदी के साथ-साथ महिला कैदियों को भी रखने की व्यवस्था है. जेल विभाग के मुताबिक, बांदा जेल का पूरा कैंपस 43.50 एकड़ में बना है, जिसमें से 4.30 एकड़ जमीन कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल की जाती है. 23.75 एकड़ जमीन रेसिडेंसियल तो 15.05 एकड़ जमीन नॉन रेंसिडेंसियल है. 2021 में यूपी पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा था कि बांदा जेल सबसे सुरक्षित है. यहां पर 70 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और जेल महकमे के वरिष्ठ अधिकारी इसकी निगरानी करते हैं. पुलिस के मुताबिक बांदा जेल में हर 10 मीटर पर एक सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. यह किसी भी जेल की सुरक्षा व्यवस्था से ज्यादा चाक-चौबंद है.

बांदा जेल में बंद बाहुबलियों की लिस्ट

बांदा जेल में अब तक कई नामचीन माफियाओं को रखा गया है. यूपी पुलिस के मुताबिक इस जेल में माफिया मुख्तार अंसारी के अलावा अतीक अहमद, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, शिशुपाल यादव, अनिल दुजाना, पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी और सुंदर भाटी जैसे हाई-प्रोफाइल कैदी बंद रहे हैं. राजा भैया, मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जब इस जेल में पहुंचे थे, तब वे जन प्रतिनिधि भी थे. यह जेल कई कुख्यात डकैत जैसे- राधे यादव, गोप्पा यादव, तोहिनी उर्फ तहसीलदार, दीपक पटेल, नरेश पटेल और ज्ञान सिंह ददुआ और बलखड़िया का भी ठिकाना रह चुका है.

माफियाओं को बांदा जेल ही क्यों भेजा जाता है?

बांदा जिला बुंदेलखंड जोन में स्थित है. यहां की बंजर और ऊबर-खाबर मिट्टी की वजह से दूर-दूर तक खाली जमीन है. खाली जमीन की वजह से कैदियों की निगरानी प्रक्रिया आसान रहती है. वहीं दूसरी तरफ बांदा राजधानी लखनऊ से काफी दूर है. इसलिए बड़े माफिया अगर यहां रहते हैं तो उनको लेकर ज्यादा चर्चाएं नहीं होती है. इतना ही नहीं, जो भी बड़े माफिया बांदा ट्रांसफर किए गए हैं, उनमें से अधिकांश पूर्वांचल इलाके के रहे हैं. कहा जाता है कि बांदा दूर होने की वजह से पूर्वांचल के ये माफिया यहां अपना नेटवर्क नहीं बना पाते हैं और जेल की कई सुविधाओं से वंचित रहते हैं. यही वजह है कि बांदा के इस जेल को माफियाओं के लिए कालापानी कहा जाता है.

जेल से राजा भैया की रिहाई की घोषणा

साल 2002 में जब कुंडा से निर्दलीय विधायक राजा भैया को तत्कालीन बसपा सरकार ने बांदा जेल में डाल दिया था, तब उनके समर्थकों ने उन्हें दूसरी जेल में स्थानांतरित करने के लिए राज्य सरकार के समक्ष एक याचिका दायर की थी. 2003 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने बांदा जाकर एक जनसभा में राजा भैया की रिहाई की घोषणा की. 2012 में जब राजा भैया को अखिलेश यादव सरकार में जेल मंत्री बनाया गया तो उन्होंने विधानसभा में बहस के दौरान बांदा जेल में अपने कठिन दिनों को याद किया था.

जेल में सुविधाओं की कमी

बांदा जेल को लेकर एक रिपोर्ट यह भी है की जेल में सिर्फ 600 कैदियों को रखने की व्यवस्था है, लेकिन यहां पर करीब 1400 कैदी रखे जाते हैं. इसकी बड़ी वजह बांदा और उसके आसपास कोई बड़ा जेल न होना है. जगह से ज्यादा कैदियों को रखने की वजह से यहां कई बड़े माफिया वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं ले पाता है. रिपोर्ट के मुताबिक बांदा के जेल में डकैतों का दबदबा ज्यादा है. क्योंकि, बांदा बीहड़ का इलाका है और यहां से गिरफ्तार अधिकांश कुख्यात डकैतों को इसी जेल में रखा जाता है. जेल के भीतर डकैतों का दबदबा होने की वजह से माफिया यहां खुद को आम कैदी की तरह ही रखना चाहता है.

विवादों का अड्डा रहा है बांदा जेल

2011 में बांदा जेल के वार्डर ने जेल अधीक्षक समेत वरिष्ठ अधिकारियों पर एक गंभीर आरोप लगाया. जेल वार्डर के मुताबिक जिले के बड़े अधिकारियों ने जेल अधीक्षक के साथ मिलकर एक रेप पीड़िता को झूठे मामले में जिला कारागार में भिजवा दिया. मामला जब तूल पकड़ा तो सरकार ने जांच की बात कराई. हाईकोर्ट भी एक्शन में आया और पुलिस के आला अधिकारियों को फटकार लगाई. हाईकोर्ट ने जेल में बंद पीड़िता को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार की काफी भद्द पिटी थी. बांदा जेल कैदियों के फरार और अधीक्षकों के सस्पेंड को लेकर भी सुर्खियों में रहा है. 2013 में बांदा जेल से हत्या का एक सजायफ्ता कैदी फरार हो गया था. 2020 और 2021 में भी यहां से कैदी के फरार होने की खबर आई थी. बात इस जेल के अधीक्षकों की करें तो पिछले 3 साल में यहां 4 अधीक्षक निलंबित हो चुके हैं. इतना ही नहीं, दो दर्जन से अधिक जेल कर्मचारियों पर निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है. हाल ही में मुख्तार अंसारी की शिकायत पर एक जेलर और 2 डिप्टी जेलर को निलंबित किया गया था. तीनों अफसरों को काम में लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया था. कहा जाता है कि एक वक्त बांदा में जेलर खुद की तैनाती यहां नहीं लेते थे. इसकी बड़ी वजह जेल में बंद हाई-प्रोफाइल कैदी का होना था.

बांदा जेल यानी कालापानी की सजा

बांदा जेल साल 1860 में ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी थी. बांदा जेल को अक्सर “काला पानी” (ब्रिटिश शासन के दौरान अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल का दूसरा नाम) के रूप में जाना जाता है . चंबल घाटी के कई खूंखार अपराधियों, डॉन और डकैतों को इस जेल में रखा गया है. बांदा जेल में सात लाख रुपये के इनामी डकैत ददुआ और बलखड़िया भी बंद हुए थे. ये दोनों उन अपराधियों में से थे जो चंबल और पाथा के वन क्षेत्रों में आतंक मचाने वाले गिरोह में शामिल थे.

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