इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आगरा में 17वीं सदी के हम्माम (सार्वजनित स्नानघर) संरक्षण रखने का प्रदान किया है। जो एक विरासत स्थल है। कोर्ट का यह आदेश कुछ व्यक्तियों द्वारा धमकी देने के बाद आया है।जस्टिस सलिल राय और जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अन्य राज्य प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पुरानी विरासत को कोई नुकसान न पहुंचे। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने आगरा के पुलिस आयुक्त को स्मारक को ध्वस्त होने से बचाने के लिए पर्याप्त बल तैनात करने का भी आदेश दिया।
स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘इस बीच, याचिका में बताए गए तथ्यों और मामले की परिस्थितियों पर विचार करते हुए पुलिस आयुक्त आगरा, उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा सर्कल, 22 द मॉल, आगरा, यूपी और उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशक छतर मंजिल परिसर, एमजी रोड, कैसरबाग, लखनऊ यह सुनिश्चित करेंगे कि इमारत/स्मारक को कोई नुकसान न पहुंचे। पुलिस आयुक्त आगरा यह भी सुनिश्चित करेंगे कि इमारत/स्मारक की सुरक्षा के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाए।’कोर्ट ने यह फैसला चंद्रपाल सिंह राणा नामक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनाया, जिसमें इस हेरिटेज इमारत को कुछ निजी व्यक्तियों द्वारा ध्वस्त किए जाने से बचाने की मांग की गई थी। राणा ने अपनी याचिका में कहा कि हेरिटेज इमारत राष्ट्रीय महत्व की है, लेकिन इसे अभी तक प्राचीन स्मारक घोषित नहीं किया गया है।
उपस्थित वकील ने तर्क दिया कि
कोर्ट को यह भी बताया गया कि एक साल पहले एएसआई ने हेरिटेज बिल्डिंग का सर्वेक्षण किया था। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, हम्माम का निर्माण 1620 ई. में हुआ था।राणा की ओर से उपस्थित वकील ने तर्क दिया कि प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के अनुसार, 400 वर्ष पुराने हम्माम को ध्वस्त होने से बचाना राज्य प्राधिकारियों के साथ-साथ एएसआई का भी कर्तव्य है। सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने स्मारक को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया तथा आगरा के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे विरासत भवन को और अधिक नुकसान पहुंचने से रोकने के लिए बल तैनात करें। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी, 2025 को उपयुक्त पीठ द्वारा करने का निर्णय लिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले को इस पीठ से जुड़ा हुआ या आंशिक रूप से सुना हुआ नहीं माना जाएगा।