प्रदेश में सुनहरे भविष्य की चाह में तमाम छात्र-छात्राएं पूरी ताकत के साथ यूपी बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं। इन सबके बीच कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने जीवन में गलतियां कीं और इन गलतियों में किसी ने हत्या की, तो किसी ने लूट को अंजाम दिया और जेल गए। लेकिन अब जाकर उन्हें एहसास हो रहा है की उन्होंने गलत किया और खुद में सुधार करने की कोशिश के लिए पढ़ाई करेंगे। जेल प्रशासन के अधिकारियों ने भी मदद की और लाइब्रेरी से किताबों के साथ साथ टीचर भी उपलब्ध करवाए। प्रदेश की जेलों में बंद कुल 257 बंदी इस बार बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं। पिछले साल की तुलना में यह संख्या दोगुना से ज्यादा है। अब सवाल है कि परीक्षा होती कैसे है? कौन इसमें शामिल हो सकता है? क्या जो रेप और हत्या जैसे गंभीर मामलों में दोषी साबित हो चुके हैं वह भी शामिल हो सकते हैं? पढ़ाई कैसे होती है? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमने जेल के डीजी से बात की। आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं…
गाजियाबाद में सबसे ज्यादा बंदी परीक्षार्थी
यूपी बोर्ड में इस साल कुल 55 लाख छात्र-छात्राएं परीक्षा दे रहे हैं। इसमें 29 लाख हाईस्कूल में हैं, 26 लाख इंटरमीडिएट में हैं। इन सबके बीच 257 ऐसे परीक्षार्थी हैं जो जेल में हैं। आज हम उन्हीं की बात करने वाले हैं। जेल में बंद इन बंदियों के लिए प्रदेश में कुल 8 सेंटर बनाए गए हैं। सबसे ज्यादा 69 बंदी गाजियाबाद की जेल में परीक्षा दे रहे हैं। इसमें 10वीं के 27, 12वीं के 42 हैं। इसके बाद फिरोजाबाद का नंबर आता है, जहां 51 बंदी परीक्षा दे रहे हैं। बरेली, लखनऊ, फतेहगढ़, बांदा, गोरखपुर, वाराणसी को केंद्र के रूप में बनाया गया है। पिछले रिजल्ट की बात करें, तो कुछ आंकड़े हैरान करने वाले मिले। 2023 में कुल 127 बंदियों ने परीक्षा दी थी। हाईस्कूल का रिजल्ट 95% रहा। वहीं इंटरमीडिएट का 69% रहा। 2022 के आंकड़ों को देखें, तब 199 बंदी परीक्षा में शामिल हुए थे। उस वक्त शाहजहांपुर जेल में बंद मनोज यादव ने 12वीं की परीक्षा 64% के साथ पास की थी। मनोज ने 2021 में एक हत्या की थी, जिसके बाद जिला अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। परीक्षा पास करने के बाद उस वक्त के डीजी जेल आनंद कुमार ने कहा था कोर्ट हमसे फीडबैक मांगेगा तो हम अच्छा लिखकर देंगे।
हर कैदी को पढ़ाई का अधिकार
जेल में पढ़ाई और परीक्षा को लेकर यूपी डीजी जेल IPS सत्य नारायण साबत कहते हैं कि जेल में कैदियों के लिए सुधार कार्यक्रम हमेशा होते रहते हैं। पढ़ाई भी उसका एक हिस्सा है। जिन लड़कों ने किसी अपराध को अंजाम दिया और जेल आ गए, अगर वह पढ़ना चाहते हैं तो जेल प्रशासन उनकी सारी मदद करता है। न सिर्फ बोर्ड परीक्षा बल्कि अब तो इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय यानी इग्नू के जरिए भी पढ़ाई करवाई जाती है। बंदियों का सबसे पहले यूपी बोर्ड के जरिए 10वीं या फिर 12वीं में नामांकन करवाया जाता है। इसके लिए बंदियों से प्रूफ मांगा जाता है कि वह 8वीं या फिर 11वीं की पढ़ाई कर चुके हैं। किसी तरह की कोई फीस नहीं ली जाती है। यूपी की लगभग जेलों में लाइब्रेरी होती है। यहीं से फॉर्म भर चुके बंदियों को किताबें मिलती हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के जरिए यहां टीचर भेजे जाते हैं जो इन बंदियों की रेगुलर क्लास लेते हैं। कई बार जेलों में हाई एजुकेटेड बंदी भी होते हैं, पढ़ाई के लिए उनसे भी मदद ली जाती है।
परीक्षा से कुछ दिन पहले कैदियों को
परीक्षा में बैठने वाले कैदियों की लिस्ट जेल अधीक्षक के पास जाती है तो वह जिला विद्यालय निरीक्षक यानी डीआईओएस को भेजी जाती है। डीआईओएस बंदियों की संख्या और सुविधा के आधार पर सेंटर तय करते हैं। ज्यादातर सेंटर मॉडल जेल को ही बनाया जाता है। परीक्षा से कुछ दिन पहले कैदियों को यहां शिफ्ट कर दिया जाता है। जेल अधीक्षक ही यहां केंद्र व्यवस्थापक होते हैं। डीजी साबत कहते हैं, रिफॉरमेशन, रिहैबिलिटेशन और रीइंटीग्रेशन, कुल मिलाकर कैदियों को सुधारना ही हमारा मकसद होता है। हर वह व्यक्ति पढ़ाई कर सकता है, परीक्षा दे सकता है जो जेल में बंद है। उसकी उम्र कुछ भी। यह मायने नहीं रखता। जेल प्रशासन चाहता है कि पढ़ने के बाद वह सुधरें। अपराध को गलत मानें। बाहर कभी जाएं तो बेहतर इंसान की तरफ जीवन यापन करें।