‘है बनना राम आसान नहीं’, भगवान राम पर IPS की लिखी कविता हो रही वायरल, पढ़कर लोग कर रहे तारीफ

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आज 22 जनवरी के दिन हर कोई रामलला की भक्ति में डूबा हुआ है। 500 साल के इंतजार के बाद आज प्रभु श्री राम अब अयोध्या में विराजमान हो गए हैं। पीएम मोदी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूजा अर्चना में शामिल हुए। इसके साथ ही आरएससए प्रमुख मोहन भागवत और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ तमाम दिग्गज वहां मौजूद रहे। जब पूरा जहां इस वक्त राममय हो गया है तो ऐसे में पुलिस विभाग के अफसर कैसे पीछे रह सकते हैं। दरअसल, आज सोशल मीडिया पर एक आईपीएस की कविता काफी वायरल हो रही है। कविता लिखने वाले आईपीएस विकास वैभव 2003 बैच के आईपीएस ऑफिसर हैं। राजधानी पटना समेत बिहार के कई जिलों में एसपी रहे। बाहुबली अनंत सिंंह को गिरफ्तार कर चर्चा में रहे। 2017 में डीआईजी (DIG) बने और अब आईजी (IG) हैं। आइये बिहार के आईपीएस अधिकारी की लिखी कविता पढ़ते हैं।

आप भी पढ़ें कविता

है बनना राम आसान नहीं !
थे जानते त्रिलोकी स्वामी स्वयं को, परंतु प्रदर्शित किंचित् अभिमान नहीं !
ध्येय बना धर्म मर्यादा रक्षण को, गतिमान आदर्श चरित्र भले विघ्नमान कहीं !
युवराज अयोध्या में जब जन्मे, उल्लासित संपूर्ण देख कृपानिधान वहीं !
परंतु जब था सिंहासन आरोहन, तय राजसूय का बना विधान नहीं !
प्रकृति रही अविचलित फिर भी, पितृवचन संकल्प मातृ केकैयी प्रति सम्मान वही !
ग्रहण वनवास कर लक्ष्मण सीता संग, पितृशोक भरत निमंत्रण पर भी धैर्य द्वंद्वमान नहीं !
है बनना राम आसान नहीं !
चित्रकूट से किया प्रारंभ नित्य सार्थक, चौदह वर्षों का वनवास सही !
अहिल्यातारक कौशल्या नंदन, ने किया शबरी फल रूपी अमृत रसपान वहीं !
परंतु इन्हीं वनमार्गों में पग-पग पर, प्रस्तुत हुए विभिन्न व्यवधान कहीं !
मृग बन प्रस्तुत हो उठा राक्षस, स्वर्णरूप इच्छित व्याकुल जनकसुता वहीं !
नहीं विचलित थे कौशल्या नंदन, परंतु भार्येच्छा प्रति अनिश्चित सम्मान नहीं !
लक्ष्मण को सौंप वैदेही रक्षण, निकल पड़े रघुवंशी संग धनुष वाण वहीं !
है बनना राम आसान नहीं !
लक्षित कर मृग मारीच रूपी मायावी, जब प्रत्यंचा से निकला वाण कहीं !
गूंज उठा हाहाकार निर्जन वन में, वैदेही प्रति रावण का ध्यान वहीं !
जब भेजा लक्ष्मण को कर विचलित, प्रस्तुत लंकापति हेतु भिक्षादान वहीं !
तपस्वी रूपी माया में फंसकर, रेखा उल्लंघन का रहा ध्यान नहीं !
पुष्पक तब हुआ लंकारूढ़, रोक सका जटायु का भी संघर्षित प्राण नहीं !
लौटकर विचलित हुए रघुनंदन, विरह भाव संग निकले ढूंढने प्रिये का मार्ग वहीं !
है बनना राम आसान नहीं !
इक्ष्वाकु कुल शिरोमणि ! था ज्ञात संपूर्ण ! परंतु संघर्ष पथ से अंतर्धान नहीं !
लौट सकते थे साकेतपुरी सैन्य संचय हेतु, परंतु निश्चय कर अन्यत्र था ध्यान नहीं !
संसाधन वनीय संग वानर सज्जन, संग हनुमान गठन नव सेना विचित्र की हुई वहीं !
दृढ़ निश्चय से गढ़कर अटल सिंधु मार्ग, पहुँचे लंका द्वीप सूदूर सही !
भीषण रण कर पराजित रावण, स्वर्ण नगरी प्रति रहा मोह नहीं !
कर अग्नि परीक्षण वैदैही पुनः धारण, अयोध्या हेतु चलने से रूके नहीं !
है बनना राम आसान नहीं !
पहुँचे अयोध्या मनी दीवाली, नृपति रूप में हुए आरूढ़ सिंहासन पर वहीं !
चलने लगा तब राम-राज्य, परंतु सर्वत्र उमंग में भी मानव शंका का निदान नहीं !
रजक प्रश्न से होकर आहत, प्रजा संदेश प्रति अंतर्द्वंद्व में घिरे श्री राम कहीं !
थी विवशता विश्वास से राज्य संधारण की, राज्यहित में किया निश्चित त्याग वहीं !
जिसे विजित करने को लांघा था सागर,परित्याग हेतु संकुचित लक्ष्मण हुए आदेशबद्ध वहीं!
रहे प्रतिज्ञाबद्ध सदा सीता विरह में अत्यंत व्याकुल, परंतु राजकीय कार्यों से अवदान नहीं !
कहते जिनको हैं मर्यादा पुरुषोत्तम ! है बनना वह राम आसान नहीं !

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