फिरोजाबाद में दो करोड़ की लूटकांड की जांच अब नए-नए खुलासों से भरी पड़ रही है। पुलिस की जांच में पता चला है कि वारदात में शामिल दोनों सिपाही न सिर्फ कानून के रक्षक थे, बल्कि उनके पिता भी पुलिस विभाग में रहकर सेवा दे चुके थे। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि एक सिपाही ने तो अपने शहीद पिता की जगह मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पाई थी—और अब वही बेटे की भूमिका अपराध में उजागर हुई है।
ये है मामला
जानकारी के मुताबिक, आरोपी सिपाही अंकुर प्रताप सिंह मूलरूप से अलीगढ़ के हरदुआगंज क्षेत्र का निवासी है। उसके पिता गिरीश पाल सिंह आगरा एसओजी में तैनात थे और करीब 2000 में बदमाशों से मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे। पिता की शहादत के बाद अंकुर को वर्ष 2011 में पुलिस विभाग में नौकरी मिली थी। वहीं दूसरा आरोपी सिपाही मनोज, मूलरूप से औरैया का रहने वाला है। उसके पिता भी पुलिस में थे और तैनाती के दौरान उन्होंने फिरोजाबाद में मकान बनवाया था।
पुलिस की जांच में सामने आया कि ट्रांसयमुना थाने में साथ तैनाती के दौरान दोनों सिपाहियों की जान-पहचान साइबर अपराधी मोनू से हुई थी। जेल से छूटने के बाद मोनू ने उन्हें लूटकांड के मास्टरमाइंड नरेश से मिलवाया, जिसने दोनों को वारदात में शामिल कर लिया। इन दोनों सिपाहियों से पुलिस की गतिविधियों की जानकारी लेकर गैंग खुद को सुरक्षित रखता था।
एक हुआ गिरफ्तार तो एक ने खुद किया सरेंडर
शुरुआत में पुलिस को जब मोनू ने सिपाहियों के नाम बताए, तो उस पर यकीन नहीं हुआ। लेकिन मोबाइल की सीडीआर, लोकेशन और सीसीटीवी फुटेज से सबूत पुख्ता हो गए। एसएसपी ने अंकुर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि मनोज गिरफ्तारी की भनक लगते ही फरार हो गया था। बाद में उसने खुद थाने पहुंचकर सरेंडर किया और पांच लाख रुपये की रकम पुलिस को सौंप दी।