उत्तर प्रदेश की पुलिस की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता व्यक्त की है. न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यूपी पुलिस द्वारा साइबर क्राइम, गैर सहमति वाली तस्वीरों खासतौर पर महिलाओं की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर करने के मामलों की जांच को लेकर सवाल उठाया है. जस्टिस अजय भनोट ने कहा कि अश्लील वीडियो का प्रसार समाज के लिए एक उभरता हुआ खतरा है और महिलाएं सबसे अधिक अनसिक्योर टारगेट हैं.
डिजिटल डिवाइस के जरिए लोगों की
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने अलग-अलग मामलों के आरोपियों द्वारा दायर की गई जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘साइबर क्राइम समाज के लिए खतरा बनते जा रहा है. खास तौर पर डिजिटल डिवाइस के जरिए लोगों की अश्लील तस्वीरें खींच कर उन्होंने स्टोर करना या फिर शेयर करना, जो कि देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रही हैं. महिला पीड़ित ऐसे अपराधों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. इन अपराधों के चलते पीड़ित को जीवन भर दर्दनाक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.’ कोर्ट ने 30 अप्रैल को एक मामले में साइबर क्राइम की जांच में पुलिस के गैर-प्रोफेशनल दृष्टिकोण को देखते हुए बुलंदशहर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को तलब किया था. इस मामले में पुलिस ने मोबाइल फोन को जब्त करने या जांच के लिए फॉरेंसिंक विज्ञान लैब में भेजने में सफल रही.
ये दो खामियां हैं
जस्टिस अजय भनोट ने कहा, ‘पुलिस अधिकारियों को चुनौती का सामना करने के लिए अपनी जांच की स्किल को और बढ़ाना होगा.’ खराब जांच के अलावा न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में सबूतों के अभाव हैं. एकल न्यायाधीश अजय भनोट ने कहा, ‘ये दो खामियां हैं. न्यायालय ने इसपर ध्यान दिया है और पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी है. लेकिन इसमें बहुत कम सफलता मिली है.’ जस्टिस अजय भनोट ने कम से तम तीन मामलों में आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि साइबर क्राइम के मामलों में पुलिस जांच की खराब गुणवत्ता पर बार-बार अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है. लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है.