माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के साथ ही पूर्वांचल में चार दशक से चला आ रहा गैंगवार भी समाप्त हो गया. अस्सी के दशक में मुख्तार अंसारी ने साधु सिंह और मकनू सिंह गिरोह का जो साथ पकड़ा वो आखिर उसको कब्र तक ले ही आया. यूं तो मुख्तार की पैदाइश गाजीपुर की रही. शौक में बदमाशी भी उसने गाजीपुर से ही शुरू की, लेकिन उसका मन बनारस में बसता था.उसकी अपनी वजहें भी हैं. बनारस पूर्वांचल का सबसे बड़ा शहर था. गैंग चलाने के लिए व्यवसायियों और कोयला मंडी से पैसा मिल जाता था. क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी रहा मुख्तार अंसारी साधु और मकनू को अपना गुरू मानता था. उन्हीं से अपराध जगत की बारिकियां भी उसने सीखीं. मकनू और साधु की हत्या के बाद मुख्तार उनका गैंग चलाने लगा. उसके गैंग में साधु – मकनू के जमाने से ही ज्यादातर ठाकुर बिरादरी के लड़के थे, जो पूर्वांचल के अलग-अलग जिलों से थे. बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद भी मुख्तार गैंग के गिरोह में साम्प्रदायिक विभाजन नहीं हुआ था.
गैंग में लड़कों को शामिल करने के लिए
1997 में मुख्तार ने अपना खुद का गैंग बनाया था. इसका नाम आई एस- 191 गैंग था. गैंग बनाने के बाद ही उसने उसी साल नवंबर के महीने में रूंगटा अपहरण और मर्डर केस को अंजाम दिया. इस केस ने मुख्तार के गैंग में साम्प्रदायिक विभाजन करा दिया. यहां से उसके गिरोह में शामिल हिंदू लड़कों ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया. यहीं से मुख्तार ने गैंग में लड़कों को शामिल करने के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी का रुख किया. पूर्वांचल के लड़कों ने मुख़्तार से दूरी बनानी शुरू कर दी थी. तब मुख्तार का सबसे करीबी गुर्गा अब्दुल कलाम हुआ करता था, जिसके बारे में कहा जाता था कि मुख़्तार ने इसको सभासद से विधायक बनवा दिया था.
मंडी से व्यावसायिक हित जुड़ता था
चंदासी कोयला मंडी मुख्तार और बृजेश के बीच अदावत की कई वजहों में से एक महत्वपूर्ण वजह रही. कोयला मंडी कमाई का बड़ा जरिया था. इसी कोयला मंडी से व्यावसायिक हित जुड़ता था, अवधेश राय का भी जिनकी हत्या 1991 में मुख्तार ने अब्दुल कलाम और दूसरे शूटरों से करवाया था. बनारस में मुख्तार ने अपनी जड़े गहरी कर ली थी. मुन्ना बजरंगी और अब्दुल कलाम जैसे शूटरों के बल पर बनारस में उसने उगाही, कोयला और जमीन में काफी पैसा बनाया, लेकिन गाजीपुर और मऊ की तरह बनारस से कभी साम्राज्य नहीं चला पाया.
2009 में बनारस से लड़ा चुनाव
बृजेश सिंह गैंग ने उसे खुलकर कभी ऐसा करने नहीं दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे ये मौका दिखाई दिया. बसपा के टिकट पर मुख्तार बनारस से बीजेपी के डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा. बनारस के इतिहास में वैसा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर आधारित चुनाव पहले कभी नहीं हुआ था. डॉक्टर जोशी के लिए भाजपा को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था. मात्र 17 हजार वोटों से बड़ी मुश्किल से डॉक्टर जोशी चुनाव जीत पाए थे. पिछले 18 साल से जेल में बंद रहा मुख्तार जिसके बारे में कहा जाता था कि वो जेल से भी साम्राज्य चलाता था. वो अपनी ये हसरत लिए दुनिया से चला गया कि बनारस में कभी वो वैसा रुतबा नहीं हासिल कर पाया, जैसा उसने मऊ और गाजीपुर में हासिल कर लिया था.