लखनऊ: उत्तर प्रदेश के डीजीपी राजीव कृष्ण ने पुलिस विवेचना में हो रही तकनीकी चूकों और गलत धाराओं में आरोपपत्र दाखिल किए जाने की समस्या पर सख्त रुख अपनाते हुए नई व्यवस्था लागू कर दी है। अब प्रदेश के सभी थानों को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि किसी भी विशेष अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमों में चार्जशीट दाखिल करने से पहले अनिवार्य रूप से अभियोजन विभाग से विधिक सलाह ली जाए।
डीजीपी की ओर से जारी सर्कुलर के अनुसार:
* विशेष अधिनियमों जैसे आईटी एक्ट, एनएसए, यूएपीए, पाक्सो, विस्फोटक अधिनियम, वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, रेलवे संपत्ति अधिनियम, टेलीग्राफ वायर अधिनियम, गोवध निवारण अधिनियम सहित अन्य कानूनों में दर्ज मामलों की चार्जशीट बिना अभियोजन अधिकारियों की सलाह के दाखिल नहीं की जाएगी।
* विवेचना में जुटाए गए साक्ष्यों का विश्लेषण कर संबंधित धारा तय करना विवेचक और पर्यवेक्षण अधिकारी की जिम्मेदारी है।
* यदि किसी केस में यह स्पष्ट न हो कि किस अधिनियम की कौन-सी धारा लागू होती है, तो जिले के संयुक्त निदेशक अभियोजन या वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी से राय लेना अनिवार्य होगा।
* सभी थानों को यह भी निर्देश है कि विशेष अधिनियमों से जुड़े मामलों में आरोपपत्र दाखिल करने से पहले ली गई विधिक राय का लिखित रिकॉर्ड सुरक्षित किया जाए, ताकि बाद में किसी तरह की प्रक्रिया संबंधी दिक्कत न आए।
यह कदम क्यों उठाया गया
यह निर्देश प्रयागराज के फूलपुर थाने में सामने आई एक बड़ी त्रुटि के बाद जारी किए गए। वहां ट्रेडमार्क अधिनियम में दर्ज अपराध पर गलती से कॉपीराइट एक्ट के तहत चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस गलती पर नाराजगी जताई और पुलिस प्रणाली में सुधार के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश दिए थे।
डीजीपी के नए आदेशों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विवेचना में हुई लापरवाही से किसी आरोपी को अनुचित लाभ न मिले और अदालतों में पुलिस को अनावश्यक कानूनी चुनौतियों का सामना न करना पड़े।